Mandi News – हार नहीं मानी, हौसला बना हथियार : मनोज कुमार की HAS अधिकारी तक पहुंचने की प्रेरक कहानी

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डेली हिमाचल न्यूज़ – मंडी : मंडी जिला के उपमंडल सुंदरनगर की निहरी तहसील के छोटे से गांव मझार से निकलकर हिमाचल प्रशासनिक सेवा (HAS) तक का सफर तय करना आसान नहीं होता। लेकिन मनोज कुमार ने यह साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों और मेहनत निरंतर हो, तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं रहती। पांचवें प्रयास में HAS परीक्षा पास कर प्रदेशभर में 17वां रैंक हासिल करने वाले 30 वर्षीय मनोज कुमार आज हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुके हैं।

मनोज कुमार का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। उनके पिता अनंतराम भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हैं, जबकि माता शकुंतला एक गृहिणी हैं। बहन दिल्ली के एक निजी अस्पताल में नर्स के रूप में सेवाएं दे रही हैं। सीमित संसाधनों और सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावजूद मनोज ने बड़े सपने देखे और उन्हें साकार करने के लिए कड़ी मेहनत को अपना हथियार बनाया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल रोहाड़ा से हुई, जहां से उन्होंने दसवीं कक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद महावीर पब्लिक स्कूल, सुंदरनगर से बारहवीं की पढ़ाई पूरी की। आगे चलकर उन्होंने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला के प्रतिष्ठित बिजनेस स्कूल से एमबीए (विपणन एवं वित्त) की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के दौरान ही मनोज के मन में प्रशासनिक सेवा में जाने का सपना आकार लेने लगा। वर्ष 2020 से मनोज ने HAS परीक्षा की तैयारी शुरू की। रोजाना 6 से 8 घंटे की नियमित पढ़ाई, अनुशासित दिनचर्या और लक्ष्य के प्रति समर्पण उनकी पहचान बन गया। हालांकि यह सफर आसान नहीं था। चार बार परीक्षा में असफलता मिली, लेकिन हर असफलता ने उन्हें तोड़ा नहीं, बल्कि और मजबूत बनाया। उन्होंने हार को सीख में बदला और खुद पर विश्वास बनाए रखा। आखिरकार, पांचवें प्रयास में मनोज कुमार को सफलता मिली और उन्होंने प्रदेशभर में 17वां रैंक हासिल कर लिया। आज वे उद्योग निदेशालय, शिमला में विस्तार अधिकारी (उद्योग) के पद पर तैनात हैं और पूरी निष्ठा के साथ अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अपनी सफलता का श्रेय मनोज अपने माता-पिता के आशीर्वाद, परिवार के सहयोग और निरंतर मेहनत को देते हैं। युवाओं के लिए उनका संदेश सरल लेकिन प्रभावशाली है उन्होंने डेली हिमाचल न्यूज़ से बातचीत करते हुए कहा की जो भी लक्ष्य आप हासिल करना चाहते हैं, उसे कड़ी मेहनत, धैर्य और आत्मविश्वास के साथ जरूर पाया जा सकता है। असफलता अंत नहीं होती, बल्कि सफलता की पहली सीढ़ी होती है।

मनोज कुमार की यह कहानी उन युवाओं के लिए उम्मीद की किरण है, जो बार-बार की असफलताओं से निराश हो जाते हैं। उनका सफर बताता है कि अगर हौसला बुलंद हो, तो पांचवीं कोशिश भी इतिहास रच सकती है।

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