HIMACHAL : पहाड़ों में नहीं चलेगा ‘आप’ का झूठा प्रचार : अजय राणा

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मंडी : पूरी दुनिया में अगर कोई झूठा इंसान है तो वो आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल है जो गिरगिट की तरह रंग बदलता है और हर रोज एक झूठ बोलता है। अब तो इनके साथी भी इनसे आगे निकल रहे रहे हैं, जिनका पूरा दिन झूठे प्रचार में ही निकल जाता है, जिससे इनके नेता खुद ही हंसीं का पात्र बनते जा रहे हैं। भाजपा प्रदेश प्रवक्ता अजय राणा ने यहां जारी प्रेस ब्यान में 

कहा कि पिछले पांच दिनों से दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया अपनी प्रवक्ताओं की फौज को एक ही झूठ का पहाड़ा सिखाकर मीडिया के सामने खड़ा कर ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं जैसे हिमाचल शिक्षा में देश में सबसे पिछड़ा राज्य है लेकिन उन्हें शायद मालूम नहीं है कि पूरे देश में हम क्वालिटी एजुकेशन देने में केरल को पछाड़कर पहले स्थान पर हैं और दिल्ली कहीं टॉप टेन की गिनती में भी नहीं है। ऐसी जानकारी है कि इनके कुछ नेताओं को मीडिया में झूठे प्रचार के लिए पैसे दिए जाते हैं। शिमला में एक शिक्षा पर संवाद कार्यक्रम के लिए पैसे देकर छात्र और एक्टिविस्ट बुलाये गए थे।
आम आदमी पार्टी के नेता जहां भी जाते हैं, सबसे पहले वहां के स्कूलों में घुस जाते हैं। फिर वही रटी-रटाई बातें- हमारे यहां फ़लाणा है, ढिमकाणा है, ऐसा है, वैसा है। बड़ी- बड़ी बातें कर यह दिखाने की कोशिश की जाती है कि दिल्ली में सरकारी स्कूल ऐसे हो गए हैं, जिनकी तुलना किसी और से की ही नहीं जा सकती। आम आदमी पार्टी ने अपना ध्येय सूत्र इसी वचन को बनाया हुआ है  कि जनता को मीडिया में शोर मचाकर कैसे गुमराह किया जा सके।
उन्होंने कहा कि सीधे-सीधे आँकड़ों की बात करें तो दिल्ली की कुल आबादी हैं 1 करोड़ 93 लाख। वहीं हिमाचल की कुल आबादी है-  70 लाख के आस-पास। दिल्ली की आबादी हिमाचल से लगभग तीन गुना है मगर हिमाचल में दिल्ली से 15 गुना ज्यादा सरकारी स्कूल हैं। जी हां, एक आरटीआई के जवाब में दिल्ली सरकार की ओर से जानकारी दी गई है 2 करोड़ की आबादी वाली दिल्ली में कुल 1030 सरकारी स्कूल है जबकि हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में मात्र 70 लाख की आबादी पर 15 हज़ार से ज़्यादा सरकारी स्कूल हैं। हमें कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले ऐसे दुर्गम इलाके में भी स्कूल खोलने पड़ते हैं जहां बच्चे 10 से भी कम हों। 
यही नहीं, दिल्ली के 1030 में से 745 स्कूल ऐसे हैं जहां पर प्रिंसिपल की स्थाई नियुक्ति नहीं हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी ना किसी शिक्षक से प्रिंसिपल के प्रशासनिक कार्य करवाए जा रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि शिक्षक पढ़ाए या बाक़ी के काम देखे? आप खुद समझ सकते हैं कि ऐसी स्थिति में अध्यापक न तो अपनी ऊर्जा बच्चों को पढ़ाने में लगा सकता है और न ही प्रशासनिक कार्यों में। दूसरी ओर, छात्र और शिक्षकों के अनुपात के मामले में हिमाचल देश के टॉप राज्यों में हैं।
दिल्ली की ऐसी बुरी हालत तब है, जब वहां आय के सैकड़ों साधन है। देश की राजधानी होने के कारण यह एक ऐसा राज्य है जहां आधे से अधिक विभिन्न खर्च केंद्र सरकार वहन करती है। किसी भी राज्य के आय का सबसे बड़ा हिस्सा इंफ़्रास्ट्रक्चर विकास और क़ानून व्यवस्था बनाए रखने आदि में खर्च होता है लेकिन दिल्ली की क़ानून व्यवस्था का पूरा खर्च केंद्र सरकार करती है। इंफ़्रास्ट्रक्चर विकास का भी आधा से ज़्यादा खर्च केंद्र सरकार वहन कर रही है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि दिल्ली सरकार का बजट कहाँ जा रहा है?
स्वास्थ्य सेवाओं की भी बात करें तो दिल्ली के आधा से ज़्यादा अस्पतालों का प्रबंधन केंद्र सरकार के हवाले है। केंद्रीय अस्पताल किसी का भी आधार कार्ड  देखकर ट्रीटमेंट नहीं करते हैं लेकिन आरोपों  की सियासत कर रही आम आदमी पार्टी को आँकड़ों से क्या लेना देना? उसके नेता जनता को नासमझ मानकर मंचों से खुलेआम अपने बच्चों की कसमें खाकर वादे करेंगे, लच्छेदार बातें करेंगे लेकिन चुनावों के बाद तुरंत पलट जाएंगे। यह बात दिल्ली में आम आदमी पार्टी के विधायकों और मंत्रियों द्वारा वेतन-भत्तों सरकारी वाहनों, सरकारी आवासों और अन्य सरकारी सुविधाओं को लेने से भी साफ हो जाती है।
अगर दिल्ली में सरकारी शिक्षा व्यवस्था वाकई इतनी शानदार होती तो वहाँ पर सबसे ज़्यादा कान्वेंट और मिशनरी स्कूल न खुल रहे होते। या जो खुले होते, उनमें एनरोलमेंट कम हो जाता है और वे बंद होने की कगार पर पहुंच जाते। मगर ऐसा हो रहा है क्या? दिल्ली-एनसीआर में जितने कॉन्वेंट और बड़r फ़्रेंचाइजीज़ के स्कूल हैं. उनका घनत्व भारत में सबसे ज्यादा है। इसी तरह यदि दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी बेहतर होती तो वहां के बड़े नाम वाले निजी अस्पताल भी बंद हो गए होते। झूठ बोलकर, बड़े वादे कर दिल्ली और अब पंजाब की सत्ता पर बैठी आम आदमी पार्टी की हालात ऐसी है कि प्राइवेट शिक्षण  संस्थानों के मालिकों को राज्यसभा भेज रही है और उनके पैसों से चुनाव लड़ रही है। ऐसे लोग शिक्षा जैसे मुद्दे पर बात न ही करें तो बेहतर होगा।

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