हिमाचल : मेहनत कम कमाई ज्यादा, मशीनों से पत्तलें बनाकर अब दोगुना पैसा कमा रही हैं ग्रामीण महिलाएं…!!!

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डेली हिमाचल न्यूज़ : मंडी

भारत सरकार की जाइका परियोजना न सिर्फ ग्रामीण महिलाओं के लिए आर्थिकी का एक साधन बन रही हैं बल्कि उनके पारंपरिक कार्यों को आधुनिक तरीकों से करवाकर आय को बढ़ाने का काम भी करती हुई नजर आ रही है। मंडी जिला सहित प्रदेश के अन्य जिलों में शादी समारोह या फिर बड़े आयोजनों में टौर के पत्तों से बनी पत्तलों पर खाना परोसा जाता है। वन मंडल मंडी के तहत बहुत सी महिलाएं पीढ़ी दर पीढ़ी टौर के पत्तों की पत्तलें बनाने का पारंपरिक कार्य करती आ रही हैं। लेकिन जाइका परियोजना ने अब इनके पारंपरिक कार्य को आधुनिकता के साथ करवाने का कार्य शुरू किया है। परियोजना के तहत वन मंडल मंडी के कुछ स्थानों पर स्वयं सहायता समूहों को पत्तलें बनाने की मशीन उपलब्ध करवाई गई है। अब महिलाएं इस मशीन के माध्यम से पत्तलें बनाती हैं। जो पत्तल पहले दो रूपए की बिकती थी, वही पत्तल अब चार रूपए की बिक रही है। खास बात यह है कि मशीन में बनी पत्तल की उम्र भी अधिक है और लंबे समय तक खराब भी नहीं होती। महिलाओं ने बताया कि अब उन्हें इससे अधिक आमदनी हो रही है और आधुनिक तरीके से बन रही पत्तलों की डिमांड भी काफी बढ़ रही है।

जाइका परियोजना वन मंडल मंडी के एसएमएस जितेन शर्मा ने बताया कि परियोजना का मुख्य उद्देश्य वनों का संरक्षण और इसके माध्यम से ग्रामीणों को आजीविका मुहैया करवाना है। परियोजना के तहत जो ग्रामीण जिस तरह का कार्य करना चाह रहे हैं, उन्हें उस तरह के कार्य को मुहैया करवाया जा रहा है।

उप अरण्यपाल वन मंडल मंडी वासु डोगर ने बताया कि महिलाओं द्वारा बनाई जा रही पत्तलों की प्रदेश सहित पड़ोसी राज्यों में काफी डिमांड बढ़ रही है। महिलाओं की आर्थिकी भी मजबूत हो रही है और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी प्रयास हो रहे हैं। टौर के पत्तों से बनी पत्तलें पूरी तरह से वायोडिग्रेडेबल हैं, जिनसे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता।

कहा जा सकता है कि ग्रामीण परिवेश में अपना जीवन-यापन करने वालों के लिए यह परियोजना न सिर्फ कारगर साबित हो रही है बल्कि उनकी आय में भी बढ़ोतरी करती हुई दिखाई दे रही है। जिससे पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ वन संपदा का सही दोहन हो पा रहा है।

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